दो जून की  रोटी में भटकती जिंदगी --बदले में मिली मौत


 *पूरे देश को झकझोर दिया औरैया ट्रक हादसे ने* 


 *पूरी दुनिया में कोरोना  संकट मजदूरों पर पलायन संकट* 


 *सरकार की तमाम बड़ी व्यवस्थाओं को लगा पलीता* 


लखनऊ गाजियाबाद मुजफ्फरनगर 16 मई। (बार और बेंच ब्यूरो) जब चीन, ईरान, इटली, अमेरिका सहित विश्व के कई प्रमुख देशों में कोरोनावायरस ने अपना प्रकोप दिखाना शुरू किया तो पूरी दुनिया दहशत के साए में जीने को मजबूर हो गई। यद्यपि विश्व के सभी देशों ने कोरोना संकट को लेकर अपने देशों में एहतियाती कदम उठाने शुरू किए क्योंकि इस लाइलाज बीमारी का कोई टीका ,उपचार अभी तक किसी देश के पास नहीं है। जैसे ही इस खतरनाक वायरस ने भारत में दस्तक दी तो पूरा देश सहम गया ।सरकारी स्तर पर हाई अलर्ट कर दिया गया। कैसे अपने देश को बचाए? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में गृह मंत्रालय और स्वास्थ्य विभाग ने माथापच्ची शुरू कर दी और तय पाया कि लॉक डाउन से इस संकट से बचा जा सकता है पहले 1 दिन का जनता कर्फ्यू लगा दिया गया लेकिन अगले दिन ही पूरे देश में लॉक डाउन लागू कर दिया गया। लॉक डाउन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनता का आह्वान करते हुए साफ दिशा निर्देश दे दिए कि जो जहां है वही रहे ।कोई घर से बाहर ना निकले। लोक डाउन का पालन कराने के लिए पूरा पुलिस अमला भी हरकत में आ गया और आमजन को घरों में रहने की कवायद तेज कर दी गई। ऐसे में लाखों वे मजदूर भी लोक डाउन में फंस गए जो दो जून की रोटी के लिए अपनी सरजमीं को छोड़कर सेकंडों , हजारों किलोमीटर दूर रोजगार की तलाश में, दूसरे राज्यों और दूसरे जिलों में पहुंचे थे। शुरू में सब सही चला सरकारी स्तर पर ऐसे श्रमिकों के लिए लाभकारी योजनाएं चलाई गई ।श्रमिकों के खाते में आर्थिक मदद पहुंचाई गई। राशन मुहैया कराया गया, लेकिन आखिर घर जैसी व्यवस्था, मजदूरों ,श्रमिकों और आमजन के लिए कब तक मिल सकती थी ?धीरे-धीरे चारों ओर से ऐसे समाचार आने लगे कि कहीं मजदूरी की दिक्कत तो कहीं पैसा खत्म तो ,कहीं भोजन का संकट ।आश्रय स्थलों में भी भरपेट भोजन ना मिलने की शिकायतें कहीं ना कहीं से आने लगी । जबकि की शिकायतों का त्वरित निदान प्रदेशों की सरकारों द्वारा और जिला प्रशासन द्वारा किया गया, फिर भी अपनी सरजमीं की चाहत, अपनों से मिलन की चाहत और भूख व जरूरी साजो सामान का संकट ज्यादा दिन तक श्रमिकों को कैद नहीं कर पाया और नतीजा यह सामने आया हर राज्य ,हर जिले से चोरी-छिपे श्रमिकों का पलायन शुरू हो गया ‌कोई टैंकर में छिपकर, तो कोई ट्रक में लद कर तो कोई एंबुलेंस में भी अपने घरों की ओर निकल पड़े ,लेकिन जब बॉर्डर पर चेकिंग हुई ऐसे श्रमिकों को पकड़कर आश्रय स्थलों में डाल दिया गया ।एक के बाद एक लॉक डाउन का सिलसिला शुरू हुआ लेकिन श्रमिकों ने पैदल या साइकिल पर ही सैकड़ों हजारों किलोमीटर की यात्रा करना शुरू कर दिया। श्रमिकों का कहना था कि उन्हें कोरोना से ज्यादा भूख का संकट मार डालेगा। इन मजदूरों की आप बीती सुने तो हर किसी का कलेजा पसीज जाता है। लेकिन जब संकट देश पर हो तो उनका दर्द भी बहुत छोटा नजर आता है क्योंकि देश पर ऐसे वायरस का संकट है यदि वह समाज में फेल गया तो ना जाने कितनी लाशें देश को देखनी पड़ेगी, कहा नहीं जा सकता। मजदूरों के अपने तर्क ,देश के सामने वैश्विक महामारी का खतरा और आमजन के लिए चिंता का विषय बना रहा है और आज भी बना हुआ है। जब श्रमिकों को पैदल पलायन करते देखा गया तो जिला प्रशासन द्वारा उन्हें रास्ते में रोककर खाद्य सामग्री मुहैया कराना, सामाजिक संगठनों द्वारा उन्हें कुछ राहत पहुंचाना हालांकि यह सब ऊंट के मुंह में जीरा तक सीमित नजर आई और जिस राज्य जिस जिले में मजदूर रुके वहां उन्हें अपनी भूख और जीवन का संकट नजर आया। सरकार द्वारा श्रमिक ट्रेन चलाई गई, बसें चलाई गई और सरकार ने दावा किया है की सभी मजदूरों को उनके घरों तक पहुंचाया जाएगा। कभी-कभी ऐसी स्थिति भी देखी गई जब स्टेशन और बस अड्डे पर हजारों लाखों की भीड़ जमा हो गई जो लोगकडाउन की सीधी धज्जियां उड़ती नजर आई। कोरोना संकट आमजन के सामने अपनी जड़े फैलाने लगा और नतीजा यह हुआ कि आज देश में 85 हजार से ज्यादा कोरोना के संक्रमित मरीजों का आंकड़ा पहुंच गया। बहुत से राज्यों और जिलों में हॉटस्पॉट कायम किए गए बहुत  सी रियायत रोक दी गई। बार-बार गृह मंत्रालय द्वारा एडवाइजरी जारी की गई, प्रधानमंत्री और राज्यों के मुख्यमंत्रियों द्वारा श्रमिकों को जहां है वहीं रुकने का आह्वान किया गया लेकिन यह सिलसिला फिर भी जारी रहा और नतीजा यह सामने आया कि उत्तर प्रदेश के  जनपद मुजफ्फरनगर में छह श्रमिकों की सड़क दुर्घटना में दर्दनाक मौत हुई तो वहीं आज औरैया में दर्दनाक हादसे में जहां 25 लोगों की जान ले ली तो वही दर्जनों मजदूरों को गंभीर रूप से घायल अवस्था में पहुंचा दिया। जिसने भी यह घटना सुनी पूरा देश सन्न रह गया। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बेहद गंभीरता दिखाई, विशेष व्यवस्था करने के निर्देश दिए, जिलों के जिलाधिकारियों ने मजदूरों के पैदल चलने दो पहिया वाहन पर चलने और ट्रक में पाए जाने पर पूरी तरह रोक लगा दी गाजियाबाद के जिलाधिकारी अजय शंकर पांडे ने सख्त हिदायत देते हुए कहा कि यदि किसी क्षेत्र में श्रमिक पैदल पलायन करते पाए गए या दो पहिया वाहन पर चलते नजर आए तो संबंधित थानेदार की जिम्मेदारी सुनिश्चित की जाएगी। यहां पर एक एस ओ को सस्पेंड भी कर दिया गया। एक सीओं से जवाब तलब किया गया क्योंकि कुछ मजदूर गाजियाबाद के भी औरैया हादसे में घायल हुए हैं। मुख्यमंत्री की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के बाद जिलाधिकारियों ने विशेष सतर्कता अभियान शुरू कर दिया है। पुलिस को हाई अलर्ट कर दिया गया है। अब श्रमिकों को उनके घर या आश्रय स्थल पर ही  पहुंचाने की सरकार ने संबंधित अधिकारियों को जिम्मेदारी सौंपी है। बहरहाल एक तरफ देश पर कोरोना का संकट है ।लोक डाउन पार्ट थर्ड पूरा हो गया है ।पार्ट फोर्थ में देश 
ने प्रवेश कर लिया है लेकिन श्रमिकों की समस्या जस की तस है अभी तक की लाखों मजदूर अपने घरों से दूर हैं चोरी-छिपे लायन जारी है जहां भी कोई वाहन श्रमिकों के लिए उपलब्ध कराया जाता है वही अनगिनत भीड़ देखी जा सकती है बंद कंटेनर में मजदूर जाने को तैयार हैं इंदौर की उस घटना को याद कीजिए जिसमें कंटेनर आदि में छुप कर मजदूरों का पलायन देखा गया। उस मंजर को भी देखिए जहां पर छोटे मासूम बच्चों को गोद में ,सर पर बैठा कर उनके मां-बाप पैदल पलायन करते नजर आए, उस नजारे को भी याद करें जब सामान के ब्रिफकेस पर अटैची पर या फिर बैलगाड़ी पर लटकते चढ़ते और चलते मासूम बच्चों को देखा गया।  माह मई की शुरुआत 1 मई से हुई ।मई दिवस नाम से पूरे विश्व में विख्यात है ।1 मई को  पूरी दुनिया मई दिवस को मजदूर दिवस के रूप में मनाती है और इस बार भी यह मई दिवस श्रमिकों पर संकट लेकर आया और अब  माहे मई   पूरा होने वाला है  सरकार की लाख योजनाएं हैं आर्थिक पैकेज की घोषणा भी हुई है लेकिन श्रमिकों की दशा और दुर्दशा दयनीय है झकझोर देखने वाली है ,जहां एक और पूरी दुनिया पर कोरोना का संकट है और आमजन अपने घरों में कैद है ,लॉक डाउन का पालन कर रहा है, ऐसे में श्रमिकों का पैदल पलायन या निजी और सरकारी वाहनों से पलायन और ऐसे में दर्दनाक हादसे बेहद चिंता के विषय बने हुए हैं। और सिर्फ यही बात सामने निकलकर आ रही है कि दो जून की रोटी के लिए भटकती जिंदगी और बदले में मिल रही है मौत, अब देश को  कोरोनावायरस से बचाया जाए या मजदूरों व श्रमिकों  को भूख व आवश्यकता की दुहाई देकर पलायन से । दोनों समस्याएं देश में विकराल होती जा रही जिसका समाधान होना बेहद जरूरी है।


आरिफ शीश महली
चीफ एडिटर
 बार और बेंच
लखनऊ मुजफ्फरनगर संस्करण